जी हाँ वीना जी-वास्तव में गगन का चाँद या चाँद का टुकड़ा कहलाना अपनी वास्तविक सुन्दरता को झुठलाना है..क्यों कि चाँद दूर से देखने में सुन्दर भले ही लगे पर वास्तव में है वो बदसूरत ही.इसलिए आप ने ठीक ही लिखा है...''मुझे मत बनाओ गगन का चाँद''.यानी मेरी सच्ची सुन्दरता को पहचानो. बहुत इंतज़ार था आप की नयी रचना का.शुक्रिया.
aap mere blog.. http://babanpandey.blogspot.com par gaye ....aabhari hun ..main LAMBU naam se aapke blog ko follow kar raha hun ..likhate rahiye ... padhte rahiye .. saadar ...
नीलेश जी, विजय जी, यशवंत जी और एना जी..आपका आभार अपनी बहुमूल्य राय देने के लिए...यशवंत जी सच तो यही है...इंसान ही सबसे खूबसूरत होता है...वास्तविक सुंदरता मन की है...उसको पहचानना चाहिए...
वीना जी , स्त्री मन के भावों को खूब बांधा है आपने .... देवी अब समझी ही कहाँ जाती है .... या मेरी ही नज़र ने ऐसा नहीं देखा ..... रचना अपना स्थान रखती है .....!!
हमारे समाज में औरत को आसमान का चाँद या धरती की देवी बनाने की एक प्रारंभ से ही परंपरा रही है , लेकिन हम यह भूल जाते हैं की वह सिर्फ एक औरत के रूप में अपनी पहचान चाहती है .......बहुत सुन्दर प्रस्तुति..... http://sharmakailashc.blogspot.com/
कविता जी, रचना जी,नीलिमा जी,राजेंद्र मीणा जी, कैलाश जी,डा. तेला, वीरेंद्र जी, आशा जी,मुकेश जी,गौतम जी, डा. नूतन,शेखर जी, राजेंद्र जी और अनामिका जी आप सबका दिल से स्वागत करती हूं और आभारी हूं
54 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना!!!
bahut he sundar bhaw...bahut he sundar echchha...sundar rachna ke liye badhayi.....swagat ke sath vijayanama.blogspot.com
जी हाँ वीना जी-वास्तव में गगन का चाँद या चाँद का टुकड़ा कहलाना अपनी वास्तविक सुन्दरता को झुठलाना है..क्यों कि चाँद दूर से देखने में सुन्दर भले ही लगे पर वास्तव में है वो बदसूरत ही.इसलिए आप ने ठीक ही लिखा है...''मुझे मत बनाओ गगन का चाँद''.यानी मेरी सच्ची सुन्दरता को पहचानो.
बहुत इंतज़ार था आप की नयी रचना का.शुक्रिया.
बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति.........बढ़िया
बहुत सुन्दर शब्द नहीं है तारीफ के
बहुआयामी कविता। सार्थक,सटीक,मार्मिक,वेधक।
स्त्री अपनी मौलिकता में कितनी सुन्दर लगती है!
aap mere blog..
http://babanpandey.blogspot.com
par gaye ....aabhari hun ..main LAMBU
naam se aapke blog ko follow kar raha hun ..likhate rahiye ...
padhte rahiye ..
saadar ...
सुन्दर रचना ...
veena ji, vakai bahut khubsurat panktiyan hai.
नीलेश जी, विजय जी, यशवंत जी और एना जी..आपका आभार अपनी बहुमूल्य राय देने के लिए...यशवंत जी सच तो यही है...इंसान ही सबसे खूबसूरत होता है...वास्तविक सुंदरता मन की है...उसको पहचानना चाहिए...
माय हार्ट,शिक्षा मित्र, कुमार जी,बबन जी, संगीता जी और जय शंकर जी आप सबका तहे दिल से शुक्रिया...
सुंदर रचना है, वीणा जी
kHOOBSURAT RACHNA
बहुत ही खूबसूरत कविता है वीणा जी ! अतीसुन्दर !
बहुत खूब...
शानदार वीणा जी , बहुत ही प्रभावी, मुझे वो कविता याद आ गयी 'चाह नहीं मै सुरबाला के गहनों मे गुंथा जाऊं ' plz follow my blogs and suggest me.
वीना जी ,
स्त्री मन के भावों को खूब बांधा है आपने ....
देवी अब समझी ही कहाँ जाती है ....
या मेरी ही नज़र ने ऐसा नहीं देखा .....
रचना अपना स्थान रखती है .....!!
I appreciate your lovely post.
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर, शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
लगा दो एक कली
मेरे बालों में
खिल जाने दो
फूल बनकर
.....स्त्री मन के भावों की खुबसूरत अभिव्यक्ति.........
सुन्दर शब्द ,खुबसूरत अभिव्यक्ति
खिल जाने दो
फूल बनकर.....bhavpuran....
अले वाह, कित्ती सुन्दर कविता..बधाई.
______________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
बहुत सुन्दर !!!
खुबसूरत अभिव्यक्ति!!!!
अथाह...
dhnyvaad
bahut khoob
हमारे समाज में औरत को आसमान का चाँद या धरती की देवी बनाने की एक प्रारंभ से ही परंपरा रही है , लेकिन हम यह भूल जाते हैं की वह सिर्फ एक औरत के रूप में अपनी पहचान चाहती है .......बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
http://sharmakailashc.blogspot.com/
वीणा जी ...बहुत सुंदर रचना है .
आभार ...
लगा दो एक कली
मेरे बालों में
खिल जाने दो
फूल बनकर
सुंदर सरल शब्दों में गहरी बात । बधाई वीनाजी ।
kitni pyari chah........:)
behtareen rachna!! achchha laga, aapka blog..........!!
follow karna para!!:)
bahut sunder kavita ...aapko badhaiyan evam shubhkamnayen
bahut shaandaar kavita...aik naari ki abhilashaa.......badhai ..in sundar panktiyo ke liye.. aik stri kee awaaj ban jaane ke liye...
bahut hi sundar rachna..
yun hi likhte rahein....
samay nikal kar mere blog ka bhi rookh karein....
बहुत अच्छी कविता है....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
आप सभी मित्रों का दिल से स्वागत और धन्यवाद..नन्ही पाखी को तो ढेर सारा प्यार...
सुशील जी, अर्पित जी, संतोष जी,कौशल जी, रूप जी, हीर जी,ब्राउन जी बबली जी..आप सबका धन्यवाद..अपनी अनमोल टिप्पणी देने का...
कविता जी, रचना जी,नीलिमा जी,राजेंद्र मीणा जी, कैलाश जी,डा. तेला, वीरेंद्र जी, आशा जी,मुकेश जी,गौतम जी, डा. नूतन,शेखर जी, राजेंद्र जी और अनामिका जी आप सबका दिल से स्वागत करती हूं और आभारी हूं
beautiful poem
वीणा जी
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया .......माफी चाहता हूँ..
कितनी ग़ज़ब की कविता लिखी है आपने....कमाल कर दिया...
nice expression of simple love that seeks just togetherness!!!
टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
एक सार्थक एवं ईमानदार प्रयास।
सफलता आपके चरण चूमे।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
Bahut badiya....
रहने दो बाहोँ में देवी समझ कर .... बेहतरीन बिम्ब है ।
एसएम जी,संजय जी,महफूज़ जी,अनुपमा जी,डा.डंडा लखनवी जी, बबली जी,शिवालिका जी,शरद जी आप सबका धन्यवाद
यहाँ बराबरी की बात ठीक लग रही है ..सुन्दर!
सूफियाना प्रयोग...क्या बात है। हिंदी साहित्य की धरोहर बन सकती हैं आपकी रचनाएं...प्रयास जारी रखें।
kavita krna wakaee koi aapse seekhe
kya amaratwa ka lok milega meri karuna ka uphar
rhne do he dev are yh mere mitne ka adhikar
mahadevi verma ne bhi aisa hi kahaa tha
जब तक धरती पर चाँद नहीं मिल जाता, तब तक गगन वाला चाँद ही सही :) ||
http://aapkamanoj.blogspot.com/2010/09/blog-post_9278.html
मत अर्पण करो पुष्प
मेरे कदमों पर
लगा दो एक कली
मेरे बालों में
खिल जाने दो
फूल बनकर
bahut sundar panktiyan.
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