कभी नहीं सोते
नदी के किनारे
कभी रोते हैं
कभी मुस्कराते हैं
अट्ठहास करते हैं
कभी सब कुछ
लील जाते हैं
कभी शांत रहकर
आसपास बिखरे
सौंदर्य को निहारते हैं
जीवन देने वाला नीर
चट्टानों से टकराकर
गिरते-पड़ते
चोट खाकर भी
नहीं होता लहू-लुहान
ताकि हमें दे सके
जीवन
और हम
अपने जीवन का मैल
बेशर्मी से
मिला रहें हैं
उसी सरिता में
जिससे पलता है
हमारा जीवन
नदियों का फैला
वक्ष स्थल
चाहे उसमें
दूध हो या न हो
उसके स्तन
चाहे सूख गये हों
हमें विश्वास है
दूध का
एक कतरा भी
हमें पवित्र कर देगा
हमारे पाप धो देगा
बहते जल में
सब कुछ
हो जाता है पवित्र
पापों को धोना है
उसके जीवन का उद्देश्य
पाप करना
हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार
10 टिप्पणियां:
पापों को धोना है
उसके जीवन का उद्देश्य
पाप करना
हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार
सुंदर अतिसुन्दर बधाई
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
धन्यवाद अनामिका जी
सच है सुनील जी हम सब बेखौफ होकर पाप करते है और उम्मीद करते हैं एक डुबकी लगाने भर से सारे पाप धुल जाएंगे
बहुत सटीक बात कह दी है आपने अपनी इस रचना में...
बहुत सही.
badhayee, charcha manch me shamil kiye jaane par.
sundar rachna, badhai....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
एक टिप्पणी भेजें