गुरुवार, 15 जुलाई 2010

नदी के किनारे

कभी नहीं सोते
नदी के किनारे
कभी रोते हैं
कभी मुस्कराते हैं
अट्ठहास करते हैं
कभी सब कुछ
लील जाते हैं
कभी शांत रहकर
आसपास बिखरे
सौंदर्य को निहारते हैं
जीवन देने वाला नीर
चट्टानों से टकराकर
गिरते-पड़ते
चोट खाकर भी
नहीं होता लहू-लुहान
ताकि हमें दे सके
जीवन
और हम
अपने जीवन का मैल
बेशर्मी से
मिला रहें हैं
उसी सरिता में
जिससे पलता है
हमारा जीवन
नदियों का फैला
वक्ष स्थल
चाहे उसमें
दूध हो या न हो
उसके स्तन
चाहे सूख गये हों
हमें विश्वास है
दूध का
एक कतरा भी
हमें पवित्र कर देगा
हमारे पाप धो देगा
बहते जल में
सब कुछ
हो जाता है पवित्र
पापों को धोना है
उसके जीवन का उद्देश्य
पाप करना
हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार

10 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

पापों को धोना है
उसके जीवन का उद्देश्य
पाप करना
हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार
सुंदर अतिसुन्दर बधाई

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

धन्यवाद अनामिका जी

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सच है सुनील जी हम सब बेखौफ होकर पाप करते है और उम्मीद करते हैं एक डुबकी लगाने भर से सारे पाप धुल जाएंगे

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सटीक बात कह दी है आपने अपनी इस रचना में...

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत सही.

Rajendra Tiwari ने कहा…

badhayee, charcha manch me shamil kiye jaane par.

VIVEK VK JAIN ने कहा…

sundar rachna, badhai....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।