रविवार, 18 जुलाई 2010

एक खत... प्यार के नाम

रोज लिखती हूं खत
भेजती हूं तुम्हें

जब-तब ही
कितना याद आता है
तुम्हारा सताना
आंखों के वो इशारे
दोस्तों के बीच
हवा में तैरते
चुंबनों का स्पर्श
अभी भी

भर देता है रोमांच
जिस्म में
वो टकटकी लगाकर देखना
मानो दिल में उतरकर
घुल गये हो
तन-मन में
तन्हाई में
तुम्हारे हाथों की गर्माहट
सांसों की गर्मी से

पिघलते
बर्फ के शोले
सुबह की धूप-सी
खिली मुस्कान
तारों की छांव में
रात के साये तले
चलते-फिरते ख्वाब
जिन्हें हकीकत में ढालने
गये थे तुम
दूसरे शहर
अब प्रतीक्षा है

तुम्हारे लौटने की
प्रतीक्षा में
भरते जा रहे हैं पन्ने
कोरी डायरी पर
लिखा जा चुका है

तुम्हारा नाम
तुम्हारे बनाये पोस्टर से
मिलती है प्रेरणा
जीने की उमंग

खिलते रहते हैं कमल
अश्कों की झील में
ताकि करती रहूं पूजा
प्यार की
लौटना बनके
माटी की सुगंध
जुड़े रहना धरती से
खड़े रहना धरती पर
ऊंचाईयों की

उड़ान के बाद
लौटना होगा

धरती पर
सोना होगा

धरती पर
मिलना होगा
धरती पर

12 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति..

vandana gupta ने कहा…

vaah gazab ke bhaav hain.
कल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

Unknown ने कहा…

कविता अच्छी लगी
अंत के वाक्यों में यथार्थ बोध है

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

उत्साहवर्धन के लिेए संगीताजी, वन्दनाजी और संदीपजी को धन्यवाद

M VERMA ने कहा…

उड़ान के बाद
लौटना होगा
यह तो तय ही है. सुन्दर भाव

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

behn vinaa ji intrnet mobaail ke yug men intrnet blog pr aek kht ke bare men pdh kr achchaa lgaa kht men jo yaaden smoyi hen unka prstutuikrn bhi bhut achcha he mubaarkbaad. akhtar khan akela kota rajsthan

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

वर्मा जी को धन्वाद। अकेलाजी खत लिखने में आज भी जो आनन्द है उसकी तुलना नही है....जिसे बार-बार पढ़ा जाता है जितनी बार पढ़ो, फिर पढ़ने को मन होता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मंगलवार २० जुलाई को आपकी रचना ...संवाद हीनता ..पीढ़ियों के बीच ...... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिेए खुक्रिया....

संजय भास्‍कर ने कहा…

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut der se aapke log par hoon . aur aapki saari kavitaaye padhi . sab bahut hi acchi hai , lekin ye kavita bahut der se man me bhari hui hai . kya tareef karun is kavita ki , this is really great work of words.. shabd bas bhaav ka kaam kar rahe hai ...

badhayi

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

संजयजी आपका अभिनंनदन और शुक्रिया

विजयजी आप ब्लॉग पर आए और अपनी टिप्पणी दी इसके लिए धन्यवाद। जब दिल में प्यार हो तो वहां अश्कों की झील भी होगी और कंवल भी। मैं चाहती हूं सभी के दिलों में प्यार बसे, किसी भी रूप में, जिससे नफरत के लिए जगह ही न बचे।